Tuesday 12 August 2014

कहानी विस्तारण (कहानी बनाओ)

काबिलियत की पहचान
किसी  जंगल  में  एक  बहुत  बड़ा  तालाब  था . तालाब  के   पास  एक बागीचा  था , जिसमे  अनेक  प्रकार  के पेड़  पौधे  लगे थे . दूर- दूर  से  लोग  वहाँ  आते  और बागीचे  की  तारीफ  करते .
गुलाब के पेड़ पे लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई  उसकी भी तारीफ करे. पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा . उसके अन्दर तरह-तरह के विचार आने लगे—” सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते  पर मुझे कोई देखता तक नहीं , शायद  मेरा जीवन किसी काम का नहीं कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं… ” और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा.
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किसान और चट्टान
एक किसान था. वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था. उस खेत के बीचो-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे. रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा पर जो सालों से होता आ रहा था एक वही हुआ , एक बार फिर किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया.
किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.
वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा .
मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुकसान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.
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पत्थर की कीमत
एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी . अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया . जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा -
बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये  पत्थर छोड़ गए थे , तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता लगा, ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है , इसे बेचना नहीं है.
युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली. अम्मा, तुम इस  पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?” , युवक ने पूछा.
देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दोतौलने के काम आएगा.”- सब्जी वाली बोली.
युवक आगे बढ़ गया. इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही .
दुकानदार बोला ,” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ..देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ.
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तीन विकल्प
बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में एक किसान रहता था. उस किसान की एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी. दुर्भाग्यवश, गाँव के जमींदार से उसने बहुत सारा धन उधार लिया हुआ था. जमीनदार बूढा और कुरूप था. किसान की सुंदर बेटी को देखकर उसने सोचा क्यूँ न कर्जे के बदले  किसान के सामने उसकी बेटी से विवाह का प्रस्ताव रखा जाये.
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मजदूर के जूते
एक बार एक शिक्षक संपन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक युवा शिष्य के साथ कहीं टहलने निकले . उन्होंने देखा की रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं , जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे जो अब अपना काम ख़त्म कर घर वापस जाने की तयारी कर रहा था .
शिष्य को मजाक सूझा उसने शिक्षक से कहा , “ गुरु जी क्यों न हम ये जूते कहीं छिपा कर झाड़ियों के पीछे छिप जाएं ; जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा !!
शिक्षक गंभीरता से बोले , “ किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना ठीक नहीं है . क्यों ना हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिप कर देखें की इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है !!
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वह भिखारी
दो मित्र को फिल्मे देखने का बहुत शौक था l एक सर्द शाम को दोनों ने फिल्म देखने का मन बनाया l दोनों तैयार होकर जैसे ही निकलने वाले थे l दरवाजे पर किसी ने दस्तक दिया l “इसवक्त कौन हो सकता हैं ?” राजन ने संदेह व्यक्त किया l “कोई भी हो चलो फिल्म का टाइम हो रहा हैं l ” कहते हुए शेखर ने दरवाजा खोला तो सामने एक अधनंगा ,कमजोर भिखारी खडा था l दोनों को देखते ही बड़ी आशा के साथ उसने थरथराती आवाज में कहा – “बेटा बहुत ठण्ड लग रही हैं ,मुझ गरीब को कुछ कपडे दे दो l “
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संतुष्टि

हावड़ा स्टेशन में हमेशा की तरह भीड़ थी l मुझे आज गुवाहाटी लौटना था l इसीलिए मैं ट्रैन की तरफ आगे बढ़ने लगी l लेकिन फिर सोचा क्यों न पहले खाना खा लिया जाए ,सो मैं रेस्टुरेंट की और मुड़ गई l रेस्टुरेंट लोगों से खचाखच भरा हुआ था l मैंने बैठने के लिए अपनी नजरे दौड़ाई ,थैंक गॉड एक सीट कोने में खाली थी l मैंने फ़ौरन जाकर कुर्सी पर अपना लगेज रखा और वॉश वेशिन की ओर चल पड़ी l हाथ धोकर मैं जैसे बाहर आई तो मेरी नजर एक वृद्धा पर पड़ी जो बेहद कमजोर लग रही थी l वह हाथ में एक थाल लिए खाना मांग रही थी – ” केउ आमाके अल्पो भात देऊ आमार खिदे पेयेच्छे ” (कोई मुझे थोड़ा सा भात दो ,मुझे भुख लगी हैं ) , ताज्जुब उसकी यह बात किसी को सुनाई नहीं दी ,न ही किसी ने उसे देखा , मैं मन ही मन सोचने लगी -क्या सचमुच लोगों की संवेदनाये मर चुकी हैं ?” जबकि उसके बगल में ही एक दम्पति मछली -भात खाने में व्यस्त थे l
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